REET 2025 शिक्षण विधियां, Teaching Methods, Hindi, हिंदी Sanskrit, संस्कृत, Level1,2 Shikshan Vidhi

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नमस्कार मैं हूं एसके कटारिया और स्काई एजुकेट में आपका स्वागत है मैं आपके लिए लेकर आ गया हूं एक और फ्रेश और नई वीडियो
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सीरीज इस वीडियो सीरीज में हम रीट 2025 के पाठ्यक्रम के अनुसार हिंदी और संस्कृत
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विषयों की शिक्षण विधियां पढ़ेंगे शिक्षण विधियों का प्रत्येक टॉपिक हम रीट 2025 के
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पाठ्यक्रम के अनुसार पढ़ने वाले हैं तो आप फर्स्ट लैंग्वेज के रूप में या सेकंड
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लैंग्वेज के रूप में या किसी भी लेवल में लेवल वन या टू के रूप में आप हिंदी या
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संस्कृत भाषाओं का चुनाव करते हैं तो आप यहां से सभी प्रश्नों को सटीक हल कर
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पाएंगे यदि आप इस वीडियो सीरीज को कंप्लीट देखते हैं आपने मेरे बहुत सारे वीडियोस पहले से ही
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आप पढ़ सकते हैं लेकिन इन वीडियोस में आपको अपडेटेड सामग्री मिलेगी बहुत ही
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शानदार और नए तरीके से हम पढ़ेंगे नई टेक्निक से पढ़ेंगे आसानी से चीजें याद हो
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पाएगी और बहुत सारी नई चीजें आप रीट के पाठ्यक्रम में इन शिक्षण विधियों की वीडियो सीरीज से पढ़ेंगे तो अब पुराना
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नहीं नया पढ़िए और स्काई एजुकेयर के साथ और एसके कटारिया सर के साथ शिक्षण विधियों
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की कंप्लीट तैयारी करिए चलिए तो अब हम इस वीडियो सीरीज को शुरू करते हैं वीडियो
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सीरीज के क्रम में यह फर्स्ट वीडियो लेक्चर है जिसका हम शुभारंभ करने जा रहे हैं आपके सहयोग से आपसे मैं गुजारिश
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करूंगा कि इस वीडियो सीरीज को आप ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और यदि आप यह वीडियो
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youtube3 के शुल्क पर आप शिक्षण विधियों के कंप्लीट वीडियोस इन सब की पीडीएफ और
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अपनी शिक्षण विधियों की बुक चलती है उसकी पीडीएफ भी आपको वहां से मिलेगी जिसे आप अपने मोबाइल ऐप में डाउनलोड कर सकते हैं
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तो चलिए बिना समय गवाए इसे आगे बढ़ाते हैं और इस वीडियो सीरीज का शुभारंभ करते हैं
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पूर्णतः रीट 2025 के पाठ्यक्रम पर आधारित शिक्षण विधियों की वीडियो सीरीज का शुभारंभ हम यहां पर करने जा रहे हैं चलिए
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तो शुरू करते हैं सबसे पहले हम यहां पर इस वीडियो सीरीज में संस्कृत भाषा की शिक्षण विधियां पढ़ेंगे इसकी पीडीएफ या बुक आपको
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चाहिए तो आप स्काई एजुकेट मोबाइल एप से डाउनलोड कर सकते हैं और बुक को ऑर्डर कर सकते हैं आपके घर पर भेज दी जाएगी और
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स्काई एजुकेट मोबाइल एप पर ये सारे कोर्सेस अवेलेबल हैं रीट के लेवल वन और लेवल टू के सभी कोर्सेस सभी सब्जेक्ट के
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उपलब्ध हैं और यदि आप किसी भाषा विशेष को भी जॉइन करना चाहते हैं तो यह भी स्काई एजुकेट मोबाइल एप पर उपलब्ध है और यदि आप
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आरपीएससी फर्स्ट ग्रेड या सेकंड ग्रेड की तैयारी कर रहे हैं तो आपके लिए भी यह सारे कोर्सेस अवेलेबल है आप इन्हें जवाइन कर
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सकते हैं तो आज के इस वीडियो में हम पढ़ेंगे भाषा के बारे में भाषा के रूप
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भाषा की विशेषता भाषा अर्जन क्या है भाषा अधिगम क्या है शिक्षण क्या है शिक्षण का उद्देश्य आधारित
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वर्गीकरण क्या होता है शिक्षण की परिभाषाएं कौन-कौन सी हैं शिक्षण विधि किसे कहते हैं शिक्षण प्रविधि किसे कहते
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हैं शिक्षण विधि और प्रविधि में अंतर यह सारी चीजें आज के इस वीडियो लेक्चर में हम
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पढ़ेंगे चलिए तो अब हम शुरू करते हैं आज के विषय को भाषा शिक्षण परिचय देखिए जब हम
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शिक्षण विधियों को पढ़ रहे हैं और विशेष रूप से भाषा शिक्षण की विधियां पढ़ रहे हैं तो सबसे पहले हमें भाषा को समझना
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पड़ेगा और इस भाषा वाले टॉपिक से ही कई बार परीक्षा में प्रश्न पूछ लिए जाते हैं निश्चित रूप से आपको एक दो प्रश्न तो यहां
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से देखने को मिलता है एग्जाम के पेपर में चाहे आप पिछले जो जो भी पेपर लगे हैं उनका अध्ययन करके देख लीजिए तो इस स्लाइड को आप
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विशेष ध्यान से देखना और सभी स्लाइडो को ही आपको ध्यान से देखना पड़ेगा क्योंकि प्रत्येक स्लाइड में वही कंटेंट लिया गया
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है जो आपके लिए बहुत ही ज्यादा महत्त्वपूर्ण है तो आइए सबसे पहले बात करते हैं भाषा की फिर हम शिक्षण की बात
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करेंगे देन हम शिक्षण विधि की बात करेंगे तो छोटा सा परिचय है भाषा का ये देख लीजिए यहां से एक दो क्वेश्चन आपको देखने को
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मिलेंगे भाषा देखिए भाषा क्या है भाषा के लिए कहा गया है कि मानव अपने मन में
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उत्पन्न विचारों और भावनाओं और अनुभवों को अर्थपूर्ण ध्वनियों और लिखित संकेतों के
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माध्यम से व्यक्त करता है वो भाषा है यानी मानव जो है वो अपने मन में जो विचार चल रहे होते हैं आंतरिक रूप से उनको यदि वह
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व्यक्त करना चाहता है तो उसे अर्थपूर्ण ध्वनियों का सहारा लेना पड़ेगा और वह उन
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ध्वनियों के सहारे या फिर लिखित संकेतों के सहारे से अपने जो विचार हैं अपनी जो
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भावनाएं हैं उनको व्यक्त कर सकता है और वह भाषा है साधारण सी परिभाषा है लेकिन यहां
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से परीक्षा में प्रश्न जो बनता है वह किस प्रकार से बनता है वह समझिए परीक्षा में सीधा यह पूछ लेते हैं कि भाषा शब्द कौन सी
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धातु से बना है भाष धातु से बना है इस प्रश्न को घुमा के पूछे तो यह पूछ लेंगे
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कि भाष का अर्थ क्या है तो इसका अर्थ है बोलना या कहना भाष व्यक्ता याम वाची इसका
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अर्थ बताओ तो इसका क्या अर्थ है व्यक्ता याम का अर्थ होता है सुव्यवस्थित तरीके से
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व्यक्त किया गया और वाची का अर्थ है वाणी यानी व्यक्त वाणी वो क्या है वही भाषा है
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तो कहा गया है भास व्यक्ता याम वाची अर्थात व्यक्त वाणी ही भाषा है यानी कि आप
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किसी को अगर कोई अपनी बात कहते हैं उसको सही तरीके से कहते हैं तो आप यह कहेंगे कि
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मैंने अपनी बात को व्यक्त कर दिया यानी आपने अपनी जो भी अभिव्यक्ति है वह दे दिए
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और वह व्यवस्थित दिए हैं तभी अगला समझ पाएगा तो जो व्यक्त है जो वाची व्यक्त है
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वही क्या है वो भास है तो भास व्यक्ता आयाम वाची यहां पर व्यक्ता याम का अर्थ है
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स्पष्ट रूप से या प्रकट रूप में और वाची का अर्थ है वाणी अतः हम यह कह सकते हैं कि
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भाष व्यक्ता याम वाच का तात्पर्य है स्पष्ट या प्रकट रूप में बोलना ठीक है
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क्लियर है तो ये कुछ बातें हुई भाषा के बारे में अब हम कुछ परिभाषाएं देख लेते हैं विद्वानों ने भाषा की क्या परिभाषाएं
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दी हैं तो स्वीट के अनुसार ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा विचारों को प्रकट करना ही
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भाषा है यानी कि स्वीट यह मानते हैं कि ध्वनि रूप जो शब्द हैं वह भाषा है आपके मन
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और मस्तिष्क में जो विचार चल रहे होते हैं उन्हें जब आप ध्वनि रूप में व्यक्त करते
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हो प्रकट करते हो तो वह भाषा है यह कौन मानते हैं स्वीट अब एक और परिभाषा देखते
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हैं फिर इन दोनों परिभाषा को एक साथ समझेंगे प्लेटो के अनुसार विचार आत्मा की
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मूख बातचीत है और वही जब ध्वन्यात्मक होकर होठों पर प्रकट होती है तो उसे भाषा की
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संज्ञा देते हैं यानी प्लेटो भी यही मानते हैं कि विचार जो है वह आत्मा की मूख
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बातचीत है ठीक है हम अपनी आत्मा से मौन रूप में जो बातचीत करते हैं वह जब
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ध्वन्यात्मक होकर जब ध्वनि रूप में प्रकट होकर सामने आते हैं तो उसे भाषा हम कहते
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हैं या भाषा की संज्ञा देते हैं यह कौन कह रहे हैं प्लेटो कह रहे हैं दोनों ही परिभाषा हों में आपने एक चीज कॉमन देखी
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होगी स्वीट भी ध्वन्यात्मक शब्दों की बात कर रहे हैं और प्लेटो भी ध्वन्यात्मक का
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नाम ले रहे हैं यानी कि जो आपके विचार हैं वो ध्वनि रूप में प्रकट होते हैं तो भाषा कहलाते हैं और भाषा की विशेषताओं में आपको
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एक चीज पढ़ाई जाती है कि भाषा का मूल स्वरूप ध्वन्यात्मक है भाषा का मूल स्वरूप
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क्या है ध्वन्यात्मक है और लिखित रूप में जो भाषा है वो प्रतीकात्मक है यानी कि
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भाषा को स्थाई करने के लिए हम इसको लिख देते हैं बाकी इसका जो मूल स्वरूप है जो
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ओरिजिनल स्वरूप है वह क्या है ध्वनि है ध्वनि रूप में जो आप अपनी बातचीत कहते हैं वही भाषा है एक-एक चीज को बारीकी से आपको
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पढ़ना होगा ये दोनों परिभाषाएं याद कर लेना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है कई बार पूछी गई है अब देखिए कहा जा सकता है कि भाषा एक
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ऐसी व्यवस्था है जिसके द्वारा हम अपने ज्ञान अनुभव और विचारों और भावनाओं को एक
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दूसरे के साथ साझा करते हैं ठीक है यह भाषा की परिभाषा यहां तक आपको समझ में आ गई होगी ऐसा मैं मान लेता हूं चलिए अब
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हमें यहां पर यह समझना है कि भाषा के रूप कितने होते हैं ऐसा प्रश्न आपको परीक्षा में पूछा जा सकता है तो मूल रूप से भाषा
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के दो ही भेद होते हैं लेकिन एक तीसरा भेद भी इसमें माना जाता है वो होता है सांकेतिक मैं यहां पे दो ही क्यों बता रहा
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हूं मुख्य रूप दो हैं वैसे तो भाषा के तीन रूप हैं लेकिन मुख्य दो ही रूप है आप किसी को अपनी बात बोल के बता सकते हैं और आप
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किसी को अपनी बात लिख के बता सकते हैं बात मींस आपके विचार आपकी भावना तो मौखिक और
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लिखित यह दो ही प्रकार होते हैं लेकिन आप इसका संकेतों में भी प्रयोग कर सकते हैं जैसे कोई सामने आपके बैठा है आपने कोई
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इशारा किया वोह आपकी बात समझ गया तो यह भी भाषा का रूप तो मान ही लेते हैं लेकिन मूल रूप से दो ही रूप है मौखिक और लिखित और यह
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मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि भाषा का एक मानक रूप होता है जो संकेतों में नहीं है भाषा की एक व्याकरण होती है जो भी संकेतों
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में नहीं हो सकती इसलिए कहा गया है कि प्रमुख रूप मौखिक व लिखित दो ही हैं
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क्योंकि सांकेतिक भाषा का ना तो कोई निश्चित व्याकरण है और ना ही मानक
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रूप चलिए अब हम भाषा की विशेषताओं को देखेंगे और इन विशेषताओं की प्रत्येक लाइन
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परीक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है तो पहली विशेषता भाषा का मूल स्वरूप
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ध्वन्यात्मक है एवं लिखित रूप में प्रतीकात्मक भाषा मूल रूप से ध्वन्यात्मक है मैं आपको
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बता चुका हूं और जब हम इसको लिख देते हैं तो यह प्रतीकात्मक है यानी हमने जो लिपि चिन्ह है उनमें भाषा को पिरो दिया हमने
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भाषा को स्थाई करने के लिए कुछ चिन्ह बना लिए कुछ आड़ी तड़ी लाइने बना ली जिन्हें हम अक्षर कहते हैं और लिपि चिन्हों के
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माध्यम से आप इसको स्थाई करने के लिए लिख देते हो अपने विचारों को एक जगह से दूसरे जगह भेजने के लिए आप इसको लिख देते हो
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लेकिन ओरिजिनल स्वरूप तो ओरिजिनल ही रहेगा जैसे कि आप मूल स्वरूप में हो आपकी फोटो
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आपने कहां भेजी तो आप तो नहीं पहुंच गए ना वहां आपकी फोटो पहुंच गई यानी कि आपका स्वरूप तो एज इट इज वो का वही अगले ने देख
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लिया लेकिन आप मूल रूप से वही है जहां पर आप हैं तो भाषा का मूल स्वरूप ध्वन्यात्मक
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है एवं लिखित रूप में भाषा क्या है प्रतीकात्मक है तो आपकी जो फोटो है वह प्रतिकृति आपका मॉडल या आपकी फोटो ठीक है
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वो प्रतीकात्मक ही हुई तो यहां पर आपको पहली विशेषता समझ में आ गई होगी दूसरी विशेषता भाषा का एक निश्चित और मानक रूप
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होता है ठीक है भाषा का प्रमुख उद्देश्य संवाद होता है जब आप यह अपने मन से या
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अपने आप से सवाल करेंगे कि भाषा की जरूरत क्या है तो आपके समझ में आएगा कि भाई बातचीत कैसे करें संवाद कैसे करेंगे तो
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भाषा का प्रमुख उद्देश्य ही संवाद है अगर संवाद की जरूरत नहीं होती तो भाषा ही नहीं
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होती अब प्रश्न ये आता है कि ये संवाद हम करते कैसे हैं ध्वनि संकेतों के माध्यम से
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सार्थक ध्वनि संकेतों के माध्यम से तो अगली विशेषता क्या बन गई भाषा के सार्थक
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ध्वनि संकेतों से लोग ज्ञान विचार और भावनाओं को एक दूसरे के साथ साझा कर सकते
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हैं तो ज्ञान विचार और भावनाओं को दूसरों के साथ साझा करने के लिए हमें भाषा के
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सार्थक ध्वनि संकेतों की आवश्यकता पड़ती है भाषा परंपरागत व सामाजिक प्रक्रिया है
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यानी कि भाषा परंपरागत रूप से चलती हुई आती है आपके समाज ने जो भाषा अपना ली वह
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परंपरागत रूप से सांस्कृतिक रूप से आपका जैसा कल्चर है वैसी ही भाषा आपके साथ
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चलेगी यानी कि भाषा एक सामाजिक प्रक्रिया के रूप में हम यहां पर देख रहे
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हैं भाषा का अस्तित्व सांस्कृतिक उत्थान पतन से सीधा जुड़ा हुआ होता है यह मैं
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इसलिए कह रहा हूं क्योंकि भाषा किसी समाज या संस्कृति की पहचान होती है जब समाज
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सांस्कृतिक रूप से समृद्ध होता है तो उसकी भाषा भी उस समाज के विचारों ज्ञान और
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साहित्यिक परंपराओं को व्यक्त करने का माध्यम बन जाती है इसी तरह जब कोई समाज
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पतन की ओर जाता है या उसकी संस्कृति कमजोर होती है तो उसकी भाषा पर भी इसका असर
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पड़ता है जिससे भाषा के शब्दों उसके प्रयोग की शैली में परिवर्तन आ जाता है तो
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भाषा का अस्तित्व सांस्कृतिक उत्थान पतन से सीधा जुड़ा होता है अगली विशेषता है कि भाषा पैथिक संपत्ति
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नहीं है यह अर्जित संपत्ति है यानी कि आपके पास कोई जमीन या आपका घर है और वह
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आपके पिताजी का है तो वो आपकी पत्रिक संपत्ति मानी जाएगी लेकिन यहां पर भाषा
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कोई पैथिक संपत्ति नहीं है ये आपको खुद को अर्जित करनी पड़ेगी आपको खुद को पढ़ना पड़ेगा मेहनत करनी पड़ेगी और इसका अर्जन
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आपको करना होगा तो भाषा पैथिक संपत्ति नहीं है यह अर्जित संपत्ति है इसको अर्जित
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करना पड़ेगा परीक्षा में सीधा प्रश्न कई बार पूछा गया यहां से भाषा का अर्जन होता
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कैसे है अनुकरण के द्वारा यानी सबसे पहले आपको यह भाषा किसी दूसरे से सुननी ही
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पड़ेगी सुनने के बाद में आप उसके जैसा बोलने का प्रयत्न करेंगे और फिर आप
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धीरे-धीरे वह भाषा सुन पाएंगे बोल पाएंगे पढ़ पाएंगे लिख पाएंगे तो भाषा का अर्जन
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कैसे होगा अनुकरण के द्वारा अगली विशेषता भाषा व्यावहारिक दक्षता है इसको आप इस
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प्रकार से समझिए कि भाषा का प्रयोग केवल सैद्धांतिक ज्ञान नहीं होता बल्कि
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वास्तविक उपयोग और प्रभाव व्यक्ति की कार्य कुशलता पर निर्भर करता है व्यवहारिक
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दक्षता का मतलब यह है कि व्यक्ति किस प्रकार से अपनी भाषा को प्रभावी ढंग से बोलने सुनने पढ़ने और लिखने में सक्षम है
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जिससे वह अपने विचारों भावनाओं और सूचनाओं को स्पष्ट और सही ढंग से दूसरों तक पहुंचा
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सके उदाहरण के लिए मैं आपको एक बात बताता हूं भाषा की व्यवहारिक दक्षता तब दिखाई
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देती है जब कोई व्यक्ति विभिन्न परिस्थितियों में सही शब्दों का चयन कर
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पाता है जैसे किसी ऑफिस में जाता है तो औपचारिक भाषा का प्रयोग करें दोस्तों के
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बीच बैठता है तो अनौपचारिक भाषा का प्रयोग करें या फिर किसी चर्चा में तर्क संगत और
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स्पष्ट भाषा का प्रयोग करना वो जानता है इसका तात्पर्य यह है कि केवल भाषा के
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नियमों को जानना मात्र पर्याप्त नहीं है बल्कि इसका सही और प्रभावी उपयोग व्यवहारिक दक्षता का संकेत है तो भाषा
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क्या है व्यवहारिक दक्षता है अगली विशेषता देखिए भाषा का विकास स्थूल से सूक्ष्म अपड
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से प्रोड और अपरिपक्व से परिपक्वता की ओर होता है देखिए इसको समझना पड़ेगा सबसे
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पहले स्थूल से सूक्ष्म की ओर समझते हैं कि भाषा किस प्रकार से स्थूल होती है और फिर वह सूक्ष्मता को प्राप्त करती है प्रारंभ
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में किसी भी भाषा में सरल और सीधे शब्दों का प्रयोग होता है लेकिन जैसे जैसे सज और
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उसकी विचारधाराओं में गहराई आती है वैसे-वैसे भाषा में भी सूक्ष्म और जटिल
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शब्दावली समाहित होने लगती है व्याकरणिक संरचनाओं और अभिव्यक्ति हों का उसमें विकास होने लगता है सरल भाषा धीरे-धीरे
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अधिक विस्तृत होने लगती है और विस्तृत अभिव्यक्ति हों को अपने अंदर समाहित करने
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लगती है तो इस प्रकार से भाषा स्थूल रूप से सूक्ष्म रूप की ओर जाती है भाषा अधिक
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गहराई को प्राप्त करती है अधिक सूक्ष्मता को प्राप्त करती है दूसरा मैंने यहां पर लिखा है अपड से प्रोड एवं अपरिपक्व से
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परिपक्वता की ओर इसका अर्थ यह है कि जब कोई भाषा अपने प्रारंभिक चरण में होती है
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तो अपेक्षाकृत सरल होती है सीधी होती है जैसे-जैसे भाषा का विकास होता है लोग इसका
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उपयोग अधिक गहराई से करने लगते हैं और वैसे-वैसे उस भाषा में भी प्रोड़ता आ जाती
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है और जैसे-जैसे भाषा का विकास होता है लोग इसका अधिक गहराई से अध्ययन करने लगते
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हैं वैसे-वैसे इसमें प्रोड़ता आती है भाषा में व्याकरणिक जटिलताएं साहित्यिक
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अभिव्यक्ति आं और सांस्कृतिक संदर्भ आदि समृद्ध होते जाते हैं और परिपक्वता और
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गहनता इसमें आती जाती है तो इस प्रकार से भाषा एक गतिशील प्रक्रिया है जो समय और
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आवश्यकताओं के हिसाब से धीरे-धीरे स्थूल से सूक्ष्म अपड से प्रोड एवं अपरिपक्व से
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परिपक्वता की ओर जाती है अगली विशेषता है भाषा का स्वरूप परिवर्तनशील एवं अनंतिम
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होता है कोई निश्चित स्वरूप नहीं होता धीरे-धीरे वह सूक्ष्मता की ओर जाती है
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नए-नए शब्द इसमें आते हैं और इसमें परिवर्तन होता रहता है तो भाषा का स्वरूप परिवर्तनशील एवं अनंतिम है ध्यान रखना
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परीक्षा में पूछ सकते हैं कोई भी दो भाषाएं एक जैसी नहीं हो सकती हैं किसी भी भाषा को कैसे शुद्ध बोला जाए पढ़ा जाए एवं
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लिखा जाए इसके लिए भाषा के नियम व्याकरण में लिखे होते हैं ध्वनि भाषा की लघुतम
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इकाई है अर्थ के आधार पर शब्द भाषा की लघुतम इकाई है एवं भाषा की पूर्ण इकाई
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वाक्य है परीक्षा में प्रश्न आ गया कि भाषा की पूर्ण इकाई क्या है तो वाक्य है शब्द मत कर देना और लघुतम इकाई पूछे तो
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ध्वनि है अर्थ के आधार पर शब्द है एवं पूर्ण इकाई वाक्य है और एक और खास बात
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पाणिनी के अनुसार यदि पूछ ले कि भाषा की सबसे छोटी इकाई क्या है तो पाणिनी के
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अनुसार भाषा की सबसे छोटी इकाई वाक्य है ठीक है यह ध्यान रखना भाषा के दो आधारभूत कौशल हैं सुनना
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और बोलना इसी पर भाषा टिकी हुई है एक बार को आपको लिखना या पढ़ना नहीं आए तो काम चल
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जाएगा आप उस भाषा को बोल के या सुनकर काम चला सकते हैं लेकिन सुनना और बोलना यह
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दोनों बुनियादी कौशल हैं इनके बिना काम चल ही नहीं सकता अर्थात यूं कहूं तो ज्यादा
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उपयुक्त होगा कि सुने और बोले बिना आप पढ़ और लिख पाओगे ही नहीं आपने किसी वस्तु का
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नाम सुना ही नहीं आपके मस्तिष्क में उस वस्तु का नाम ही नहीं है कि उसको क्या बोलते हैं तो क्या लिखोगे आप उसे नहीं लिख
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पाओगे और क्या बोलोगे बोल ही नहीं पाओगे तो किसी भी भाषा के दो आधारभूत और
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बुनियादी कौशल है सुनना और बोलना अगर आपको सुनना और बोलना आने लग गया उसके बाद में
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आपको चाहे पढ़ना और लिखना नहीं आए तो भी आप काम चला लोगे आप उस भाषा को भली भाती
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बोल पाओगे सुन पाओगे और भाषा के चार अनिवार्य कौशल हैं
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सुनना बोलना पढ़ना और लिखना आज के समय यदि आपको किसी भी भाषा में दक्षता प्राप्त
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करनी है पूर्णतः उस भाषा पर आपको अपनी क मान रखनी है आप उसमें निपुणता प्राप्त
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करना चाहते हैं तो आपको सुनना बोलना पढ़ना एवं लिखना भली बाती आना चाहिए अब यहां पर
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आप सोच रहे होंगे सर कौन सी बड़ी बात है सुनना बोलना पढ़ना लिखना तो सबको आता है भाई मैं कौशल की बात कर रहा हूं और जहां
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पर कौशल की बात होती है वहां पर सुनने में दक्षता चाहिए ध्यान पूर्वक सुन कर के उसके
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प्रत्येक शब्द को और उसके पीछे के भेद को और उसकी बात की गहराई को वह क्या कहना चाह
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रहे हैं यह जब आप में क्षमता आ जाती है तो यह मानेंगे कि आप में सुनने का कौशल है आप
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किसी की बात को सुन रहे हो आपको पूरी तरह से समझ ही नहीं आ रही इसका मतलब आप में सुनने का कौशल नहीं है और सुनने का कौशल
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भी पूरी तरह से कब उजागर होगा जब आपको बोलना पढ़ना और लिखना यह भी आएगा क्योंकि
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आपका शब्द भंडार उस तरह का हो जाएगा तो आप बोली गई बात का पूर्णतः अर्थ ग्रहण कर
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पाओगे तो सुनना और बोलना बोलना भी दक्षता पूर्ण होना चाहिए आपके व्यवहार में आपके
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आचार विचार में लगना चाहिए कि आप एक व्यवस्थित अच्छे नागरिक हो और आपको उस
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भाषा पर पूर्ण अधिकार है और आप भली बाती उस भाषा को समझते हैं यानी कि यह चार
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अनिवार्य कौशल है सुनना बोलना पढ़ना और लिखना इनको आप यदि ग्रहण कर लेते हो तो आप
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उस भाषा में दक्ष माने जाओगे तो भाषा को पूर्णतः सीखने के लिए अनिवार्य कौशलों से
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आपको गुजरना है परीक्षा में प्रश्न आ जाता है कि भाषा के बुनियादी कौशल कौन-कौन से
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हैं या आधारभूत कौशल कौन-कौन से हैं तो सुनना और बोलना यदि ऑप्शन में सुनना और
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बोलना नहीं है तो फिर ये चारों के चारों आपको लिखना पड़ेगा सुनना बोलना पढ़ना लिखना इनका क्रम भी यही होता है पहले नंबर
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पर सुनना दूसरे पर बोलना तीसरे पर पढ़ना और चौथे पर लिखना अगर इसी क्रम में चलते हैं तो आप भाषा में दक्षता प्राप्त करते
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हैं इनको हम भाषा कौशल में दक्षता वाले टॉपिक में पढ़ेंगे अब हम आगे पढ़ेंगे भाषा
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अर्जन और भाषा अधिगम इस वीडियो सीरीज में भी हम बहुत जगह भाषा अर्जन शब्द काम में
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लेंगे और बहुत जगह हम भाषा अधिगम शब्द को काम में लेंगे इन दोनों के अलग अर्थ निकलते हैं तो इसको आप देखिएगा भाषा अर्जन
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क्या है वैसे संक्षेप में आपको मैं इसका अर्थ बताना चाहूं तो भाषा अर्जन उसे कहते हैं जो आप बिना विद्यालय जाए अनुकरण के
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द्वारा कहीं भी आप इसको सुन रहे हैं और सुन कर के आप सीख रहे हैं वह भाषा अर्जन
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है और भाषा अधिगम वह है जहां आप नियम बद्ध प्रक्रिया के द्वारा व्याकरण के नियमों को
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पढ़ते हुए उस भाषा को सीखते हैं व भाषा अधिगम है यानी नियम पूर्वक जो प्र कया चलती है व अधिगम है और जो आप अवचेतन
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अवस्था में जो भी सुन रहे हैं अपने आसपास और उसको बोलना सीख रहे हैं वह भाषा का
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अर्जन है तो इसको हम व्यवस्थित तरीके से एक बार देख लेते हैं भाषा अर्जन उस
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प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें बालक भाषा को ग्रहण करने व समझने की क्षमता को अर्जित करता है बालक के शब्दों और वाक्यों
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के प्रयोग के साथ ही भाषा ग्रहण करने की क्षमता अर्जित होने लगती है यानी कि बालक
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जब आसपास में जो भी सुन रहा है उसको समझने लग जाता है ठीक है उसका भाव ग्रहण करने लग
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जाता है उसके बाद में वह उसका थोड़ा सा प्रयोग करना भी सीख जाता है और वह भाषा के
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शब्दों का प्रयोग करता है वाक्यों का प्रयोग करता है तो वह भाषा को अर्जित कर रहा है उसमें क्षमता आ गई है कि वह भाषा
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को अर्जित कर रहा है साधारण रूप से सभी बच्चों में भाषा अर्जन की स्वाभाविक
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क्षमता होती है और यह एक अवचेतन और स्वाभाविक प्रक्रिया है सभी बच्चों में
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होती है बा भाषा का अर्जन लोगों के बीच अंतः क्रिया के द्वारा एक दूसरे से बातचीत
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करके बिना विद्यालय जाए व बिना व्याकरणिक नियमों के भी कर लेता है जबकि भाषा अधिगम
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एक नियम बद्ध और चेतन प्रक्रिया है यहां आपको सचेत रहना पड़ेगा एक एक नियम के
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प्रति ठीक है आपने पढ़ा होगा जैसे संधि पढ़ रहे हैं समास पढ़ रहे हैं तो एक एक मात्रा और शब्द का कितना महत्व है तो यदि
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आप भाषा अधिगम कर रहे हैं तो आपको पूरी तरह से सचेत रहना पड़ेगा ठीक है भाषा
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अर्जन आप कैसे भी कर सकते हैं आप सो रहे हैं लेट रहे हैं टीवी देख रहे हैं कैसे भी कर सकते हैं लेकिन भाषा अधिगम एक सचेत व
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नियम बद्ध प्रक्रिया है भाषा का ज्ञान प्रदान करने के लिए भाषा के व्याकरणिक नियम आपको यहां पर सिखाए जाएंगे भाषा
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सिखाते समय बालक की अर्जित भाषा है जो यह जो अर्जित भाषा है जो अर्जन करता है समाज
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में उसका सहारा लिया जाता है उसके बिना यह नहीं हो सकती इसमें भाषा के नियम बालक को
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याद करवाए जाते हैं भाषा अधिगम प्रक्रिया में छात्र औपचारिक रूप से विद्यालय जा सकता है या किसी शिक्षण संस्थान में जहां
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पर भाषा सिखाई जा रही हो वहां भी जा सकता है और भाषा के व्याकरणिक नियमों को सीख
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सकता है तो इस प्रकार से भाषा अधिगम और भाषा अर्जन आपने यहां पर समझा अब हम बात
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करते हैं शिक्षण की शिक्षण क्या है देखिए साधारण शब्दों में कहूं तो शिक्षण वह प्रक्रिया है जो आपको सीखने की सुविधा
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प्रदान करती है क्या सीखने की सुविधा प्रदान करती है शिक्षा शिक्षा क्या है
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शिक्षा ज्ञानम अनुभव शिक्षा ज्ञान और अनुभव है देखिए शिक्षण शिक्षार्थियों को
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शिक्षा प्रदान करने के लिए किया जाता है शिक्षण क्यों किया जाता है शिक्षार्थियों को शिक्षा प्रदान करने के लिए और शिक्षा
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क्या है शिक्षा ज्ञानम अनुभव आपको ज्ञान और अनुभव प्रदान करती है कौन शिक्षा तो
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शिक्षण उस प्रक्रिया का नाम है जिसके द्वारा आप शिक्षा ग्रहण करते हैं शिक्षण शब्द की निष्पत्ति शिक्ष धातु
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में लूट प्रत्यय लगने से हुई है कैसे हुई है शिक्षण शब्द की निष्पत्ति शिक्ष धातु
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में लट प्रत्यय लगने से हुई है शिक्षण का अर्थ है सिखाना शिक्षण का अर्थ क्या है
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इसका अर्थ है सिखाना शिक्षण एक त्रिआयामी प्रक्रिया है तीन आयाम होते हैं इसमें एक
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शिक्षक दूसरा छात्र और तीसरा पाठ्यक्रम तो इसके तीन आयाम शिक्षक छात्र व पाठ्यक्रम
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है जिसमें से शिक्षक जो है वह पाठ्यक्रम को माध्यम बनाता है ठीक है और छात्रों का
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मार्गदर्शन करता है यानी कि इसमें शिक्षक पाठ्यक्रम को माध्यम बनाते हुए छात्रों से
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परस्पर सुव्यवस्थित अंतः क्रिया करता है सुव्यवस्थित विधि विधान जो भी नियम है
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शिक्षण के उन नियमों से गुजरते हुए आपका शिक्षण का कार्य संपन्न होता है ठीक है तो
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तीन आयाम छात्र शिक्षक और पाठ्यक्रम के बीच में तालमेल बिठाने का कार्य ही शिक्षण
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है शिक्षण का मुख्य उद्देश्य क्या है छात्रों को सीखने की सुविधा प्रदान करना
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ताकि छात्र जो है जो बाल मस्तिष्क जो है वह ज्ञान को ग्रहण कर पाए अनुभव को ग्रहण
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कर पाए शिक्षण प्रक्रिया में जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य की समस्त शक्तियों का
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उत्तरोत्तर विकास होता है शिक्षण प्रक्रिया में मनुष्य की जो आंतरिक शक्तियां हैं उनका विकास किया जाता है मूल
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रूप से आप जब सीखते हैं तो आपके अंदर बाहर से कोई तत्व थोड़ी डाले जाते हैं नहीं
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डाले जाते आप के अंदर जो शक्तियां हैं उन्हीं को उजागर किया जाता है आपको बताया
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जाता है आपके मस्तिष्क को कि आप यह सारी चीजें अपने अंदर समाहित कर सकते हो और
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इनका लाभ लेकर आप जीवन में तरक्की कर सकते हो और अपने जीवन को अच्छी प्रकार से भली
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बाती जी सकते हो एक अच्छे नागरिक के रूप में तो शिक्षण प्रक्रिया में व्यक्ति जन्म
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लेता है तब से लेकर मृत्यु तक अपने मस्तिष्क की समस्त शक्तियों का निरंतर
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विकास करता है शिक्षण सामाजिक प्रक्रिया है जिस पर
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देश की शासन प्रणाली सामाजिक व दार्शनिक मूल्यों सामाजिक परिस्थितियों तथा
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संस्कृति आदि का प्रभाव पड़ता है किस देश की शिक्षण प्रणाली कैसी होगी वह उस देश की
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शासन प्रणाली के द्वारा तय किया जाता है या उस देश की शासन प्रणाली के आधार पर ही
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वहां का पाठ्यक्रम वहां का सिलेबस और शिक्षण की विषय वस्तु तैयार होती है तो हम यहां पर यह कह सकते हैं कि शिक्षण वह
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सामाजिक प्रक्रिया है जिस पर देश की प्रणाली उस देश का सामाजिक और दार्शनिक मूल्य क्या है उन मूल्यों के हिसाब से
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वहां पर शिक्षा प्रदान की जाएगी सामाजिक परिस्थितियों तथा संस्कृति आदि का प्रभाव भी उस शिक्षण पर रहेगा तो यानी शिक्षण कोई
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ऐसा कार्य नहीं है कि पूरे वर्ल्ड में एक जैसा ही चलता हो वहां के कल्चर का वहां की
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संस्कृति का वहां की सामाजिक परिस्थितियों का प्रभाव यहां पर आपको देखने को मिलेगा
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अब हम यहां पर शिक्षण के कुछ उद्देश्य आधारित वर्गीकरण देखेंगे चलिए मूल रूप
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शिक्षण के तीन प्रकार से उद्देश्य आधारित वर्गीकरण हो सकते हैं औपचारिक अनौपचारिक
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और निरौपचारिक जिन्हें आप अपने उद्देश्यों के आधार पर जिस माध्यम से भी सीखना चाहे
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सीख सकते हैं या जिस माध्यम से भी ग्रहण करना चाहे कर सकते हैं ठीक है तो शिक्षण एक उद्देश्य पूर्ण प्रक्रिया है स
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उद्देश्य प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति उद्देश्यों के आधार पर औपचारिक शिक्षा ग्रहण करना चाहेगा या
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अनौपचारिक या निरौपचारिक वह उस प्रक्रिया को चुनेगा और अपनी शिक्षा को ग्रहण करेगा
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जैसे उदाहरण के रूप में हम इसको एकएक को समझते हैं सबसे पहले बात करते हैं औपचारिक
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शिक्षण की औपचारिक शिक्षण या औपचारिक शिक्षा जो है वह कैसे प्राप्त होती है
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औपचारिक शिक्षण एक संगठित और व्यवस्थित शिक्षण की प्रक्रिया है यानी आप यदि
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औपचारिक शिक्षा ग्रहण करेंगे तो औपचारिक शिक्षण प्रक्रियाओं से आपको गुजरना पड़ेगा और यह एक संगठित है और व्यवस्थित है किस
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प्रकार से जिसमें शिक्षण के उद्देश्य शिक्षण के स्थान समय और मूल्यांकन की
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प्रणालियां हासिल की जाने वाली की उपाधियां आदि पूर्व नियोजित होते हैं यानी
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कि आप औपचारिक शिक्षण प्रक्रिया से गुजरना चाहते हैं तो आपको कौन से विद्यालय में
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पढ़ना है कौन से कॉलेज में पढ़ना है उसके लिए आपको पहले यह तय करना पड़ेगा मूल रूप
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से उद्देश्य पहले तय होगा उसके बाद में उस उद्देश्य के अनुरूप आप शिक्षण संस्था का
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चुनाव करेंगे फिर उस स्थान का चुनाव करेंगे जहां से आपको यह शिक्षण प्राप्त
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करना है समय का चुनाव करेंगे कि आपको कब यह शिक्षण प्राप्त करना है और मूल्यांकन
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की प्रणालियां कि इन प्रणालियों के द्वारा इसका मूल्यांकन होगा कि उसने क्या हासिल किया और उसके बाद में जो डिग्री आपको
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मिलेगी यह पहले से ही तय है कि यह वाली पढ़ाई आप कर रहे हैं तो इसकी यह उपाधि या यह डिग्री आपको मिलेगी यह सब औपचारिक
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शिक्षण में होता है और पूर्व नियोजित होती है यह सारी चीजें इसमें उद्देश्य पूर्व
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नियोजित है स्थान पूर्व नियोजित है समय मूल्यांकन की विधियां हासिल की जाने वाली
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उपाधि यह सब कुछ उदाहरण के लिए विद्यालयों महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों द्वारा
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होने वाला शिक्षण इसका उदाहरण है और यह जो प्रक्रिया है शिक्षण की जो व्यापक रूप से
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देश में चलाई जाती है यह संकुचित प्रक्रिया है संकीर्ण है छोटी प्रक्रिया
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है शिक्षण की यानी कि शिक्षा एक ऐसी चीज है जो केवल औपचारिक शिक्षण से ही आप
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प्राप्त नहीं कर सकते इसके लिए आपको विभिन्न प्रकार के अनौपचारिक या निरौपचारिक प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ेगा
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तो फिर सर विस्तृत प्रक्रिया क्या है वह है आपकी अनौपचारिक शिक्षण देखिए अनौपचारिक
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शिक्षण क्या है यह कहां से प्राप्त होता है इसको समझते हैं यह शिक्षा जीवन के
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प्रत्येक अनुभव से प्राप्त होती है आप जहां भी हैं जो भी देख रहे हैं सुन रहे
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हैं कहीं भी जा रहे हैं आ रहे हैं यह सब कुछ अनौपचारिक है इसमें कुछ भी पहले से तय
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नहीं है और जीवन के प्रत्येक अनुभव से आप कुछ ना कुछ तो अवश्य ही सीख रहे हैं तो
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अनौपचारिक शिक्षण में शिक्षण का स्थान समय मूल्यांकन की प्रणालियां हासिल की जाने
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वाली उपाधियां आदि की बाध्यता हों से यह मुक्त होता है परिवार समाज मित्र मंडली
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खेल धर्म प्रकृति या अन्य चुनौतियों से व्यक्ति सीखता है यह शिक्षण की अनौपचारिक
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प्रक्रिया है और यही शिक्षण का व्यापक रूप है देखिए निरौपचारिक में इन दोनों का मिश्रण
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होगा अनौपचारिक तथा औपचारिक दोनों का मिश्रित रूप निरौपचारिक शिक्षण में देखने
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को मिलता है इसमें शिक्षण हेतु स्थान समय मूल्यांकन की प्रणालियां हासिल की जाने
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वाली उपाधियां आदि के संबंध में कुछ बाध्यता एं होती हैं और कुछ
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मुक्तियाला भी छोड़ा जाएगा स्वतंत्रता भी दी जाएगी इसमें शिक्षण की जरूरतों को
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ध्यान में रखा जाता है जैसे कोई व्यक्ति है वह विद्यालय में नहीं जा सकता लेकिन फिर भी उसे सीखना है और विद्यालय वाली
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शिक्षा ही ग्रहण करनी है तो यहां पर उसकी जरूरत के हिसाब से एक पाठ्यचर्या तय की जाएगी जो वह घर पर ही प्राप्त कर सकता है
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या ऑनलाइन प्राप्त कर सकता है तो निरौपचारिक शिक्षण में इस तरह की चीजें होती हैं जैसे कि प्रौढ शिक्षा सतत शिक्षा
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खुली शिक्षा दुरस्त शिक्षा आदि निरौपचारिक शिक्षण के उदाहरण हैं
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अब यहां पर जब औपचारिक अनौपचारिक और निरौपचारिक की बात हो रही है तो प्रौढ
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शिक्षा का भी नाम मैंने लिया तो आपको स्मरण रहे इसके लिए बता देता हूं भारत
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सरकार ने प्रौढ शिक्षा का नाम बदलकर सभी के लिए शिक्षा कर दिया है तो यह ध्यान
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रखना है जो न्यू इंडिया साक्षरता कार्यक्रम के तहत एक कार्यक्रम चलाया जा रहा है यह कार्यक्रम वर्ष 2022 से 27 के
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लिए है इस कार्यक्रम के तहत अगले पा सालों में ड शिक्षा के क्षेत्र में या फिर यूं
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कह सभी के लिए शिक्षा के क्षेत्र में नए आयाम हासिल किए
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जाएंगे तो यहां पर हमने मूल रूप से सबसे पहले यह समझा कि भाषा क्या है भाषा के रूप
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कौन-कौन से हैं भाषा की परिभाषाएं क्या हैं भाषा की विशेषताएं क्या हैं भाषा
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अधिगम और भाषा अर्जन किसे कहते हैं और शिक्षण के उद्देश्य आधारित वर्गीकरण
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जिसमें हमने औपचारिक अनौपचारिक और निरौपचारिक को समझा और अब हम समझेंगे
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शिक्षण की परिभाषा हों को देखिएगा शिक्षण की परिभाषाएं मॉरिसन के अनुसार शिक्षण वह
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प्रक्रिया है जिसमें अधिक विकसित व्यक्तित्व कम विकसित व्यक्तित्व के संपर्क में आता है वह कम विकसित
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व्यक्तित्व अग्रिम शिक्षा के लिए विकसित व्यक्तित्व की व्यवस्था करता है यानी कि
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मॉरिसन यह मानते हैं कि शिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें ज्यादा विकसित व्यक्तित्व है कम विकसित व्यक्तित्व के
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संपर्क में आता है और उस कम विकसित व्यक्तित्व के लिए अधिक विकसित बनने के
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लिए व्यवस्थाएं करता है यह मोरिस मानते हैं स्किनर के अनुसार शिक्षण पुनर्बलन की
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आकस्मिकता का क्रम है पुनर्बलन उसे कहते हैं यदि कोई छात्र किसी प्रश्न का जवाब दे
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रहा है या मान लीजिए कोई भी चीज आप पढ़ा रहे हैं वह उसको अच्छे से समझ पा रहा है
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तो शिक्षक उसको शाबाशी देंगे या फिर छात्र अगर गलत उत्तर दे रहा है तो उसमें सुधार
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हम बताएंगे तो शिक्षक जो बातें उसको बता रहा है सुधारात्मक या सराहना या कुछ भी बालक की को प्रतिक्रिया दे रहा है व वो
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पुनर्बलन है वो फीडबैक है तो शिक्षण प्रक्रिया के दौरान पुनर्बलन की आकस्मिकता
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हों का क्रम कि बच्चे को आपने शाबाशी दी या उसमें सुधार बताया यह क्रम जो चलता है
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ये इसी क्रम को वो शिक्षण कहते हैं ठीक है अगली परिभाषा बर्टन के अनुसार है उनका
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मानना है कि शिक्षण सीखने के लिए दी जाने वाली प्रेरणा निर्देशन एवं प्रोत्साहन है
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ठीक है यानी साधारण शब्दों में उन्होंने लिखा है कि शिक्षण प्रक्रिया जो है वह सीखने के लिए हम जो प्रेरणा देते हैं हम
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जो निर्देशन देते हैं या जो प्रोत्साहन देते हैं वही क्या है वो शिक्षण है अगली परिभाषा रायबर्न के अनुसार है शिक्षण के
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तीन बिंदु वो बताते हैं शिक्षक शिक्षार्थी एवं पाठ्यवस्तु इन तीनों के बीच संबंध
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स्थापित करना ही शिक्षण है और यह संबंध छात्रों की शक्तियों के विकास में सहायता
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प्रदान करता है यह संबंध छात्र की शक्तियों के विकास में सहायता प्रदान करता है ऐसा कौन मानता
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रायबर्न मानते हैं अगली परिभाषा स्मिथ के अनुसार है वह मानते हैं कि शिक्षण अधिगम
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को उत्प्रेरित करने वाली एक पद्धति है तो इस प्रकार से हमने यहां पर शिक्षण की परिभाषाएं देखी और अब बात करते हैं शिक्षण
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विधि की शिक्षण क्या है यह तो आपने भली बाती समझ ही लिया अब शिक्षण विधि को भी
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समझ लीजिएगा तो देखिए शिक्षण विधियां वे तरीके हैं जिनके
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माध्यम से शिक्षक शिक्षार्थियों को ज्ञान प्रदान करते ता है शिक्षण विधियों के
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माध्यम से शिक्षक विषय वस्तु को सरल बनाकर शिक्षार्थियों के ज्ञानार्जन में सहयोग
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करते हैं वह शिक्षार्थियों के व्यवहार में परिवर्तन लाते हैं अभी मैंने आपको शिक्षण
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की परिभाषा बताते समय यह बताया कि शिक्षण एक त्रिआयामी प्रक्रिया है जिसमें शिक्षक
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शिक्षार्थी और पाठ्यक्रम तीन चीजें होती हैं तो शिक्षण विधियों में जो पाठ्यक्रम
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है जो विषय वस्तु है उसको सरल बनाकर विद्यार्थियों का ज्ञानार्जन किया जाता है
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यानी कि शिक्षण विधि शिक्षण में काम आने वाली प्रक्रिया है ठीक है
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चलिए डीवी के अनुसार पद्धति वह तरीका है जिसके द्वारा हम पठन सामग्री को व्यवस्थित
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करके निष्कर्षों की प्राप्ति करते हैं यानी डीवी यह मानते हैं कि पद्धति वह
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तरीके हैं जिनके द्वारा हम पठन सामग्री को व्यवस्थित करते हैं और फिर छात्र के सामने
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उसको भेजते हैं या उसका प्रदर्शन करते हैं देन हम कुछ निष्कर्ष प्राप्त करते हैं तो
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ऐसा डीवी मानते हैं बाइंडिंग के अनुसार शिक्षण विधि शिक्षा प्रक्रिया का गतिशील
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कार्य है ठीक है ऐसा कौन मानते हैं शिक्षण प्रक्रिया का गतिशील कार्य बाइंडिंग मानते
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हैं और इस प्रकार शिक्षण विधि का आशय इस तथ्य से लगाया जाता है कि किसी विषय के
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ज्ञान को छात्रों तक किस प्रकार पहुंचाया जाए जिससे वे निर्धारित उद्देश्य की प्राप्ति कर सके और शिक्षण विधि का वही
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महत्व है जो सही मार्ग का मंजिल तक पहुंचाने के लिए होता है तो यानी अगर आप
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शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं और शिक्षा प्राप्त करना आपकी मंजिल है तो शिक्षण विधि वहां तक पहुंचाने का रास्ता है अब कई
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बार शिक्षण प्रविधि शब्द को भी प्रयोग में लिया जाता है तो अब यहां पर आपको प्रविधि को भी समझना होगा क्योंकि शिक्षण विधि और
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शिक्षण प्रविधि यह दोनों कई बार आप एक ही समझ लेते हो दोनों में मूलभूत अंतर होता है प्रविधि को समझते हैं देखिए शिक्षक
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द्वारा समय और परिस्थिति के अनुसार विषय वस्तु के प्रस्तुतीकरण को रोचक प्रभावी
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तथा उद्देश्य प्रक बनाने के लिए जिन सहायक उपायों को काम में लिया जाता है उन्हें
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शिक्षण प्रविधियां कहते हैं शिक्षण प्रविधियां शिक्षक की उन विभिन्न भूमिकाओं
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से जुड़ी होती हैं जो शिक्षक और शिक्षार्थी के बीच होने वाली अंतः क्रिया द्वारा सफलता पूर्वक शिक्षण उद्देश्य को
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प्राप्त करने में मदद करती हैं आइए इसको एक एग्जांपल के द्वारा समझते हैं शिक्षक
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भाषण के दौरान छात्रों के सामने विषय वस्तु को प्रस्तुत करते तो वह भाषण विधि हुई किंतु वह अपने भाषण
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को प्रभावी तथा रोचक सरल और सरस बनाने के लिए बीच-बीच में उदाहरण देता है उस विषय
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वस्तु को स्पष्ट करता है भाषण के दौरान कुछ प्रश्न पूछता है या कोई अन्य संबंधित
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कार्य करता है तो यह सभी कार्य क्या है प्रविधि की श्रेणी में आते हैं तो संक्षेप
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में इस प्रकार कह सकते हैं कि विधि विषय वस्तु का प्रस्तुतीकरण का ढंग है यानी कि
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शिक्षण विधि क्या है विषय वस्तु का प्रस्तुतीकरण का ढंग है तो प्रविधि उस
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प्रस्तुतीकरण को प्रभावी बनाने का साधन है तो शिक्षण प्रक्रिया में अनेक प्रविधियां
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का शिक्षक के द्वारा प्रयोग किया जाता है मूल रूप से आप किसी विधि को अपना रहे हैं
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तो उसके लिए जो सहायक विधियां काम में लेते हैं उन सहायक विधियों को प्रविधियां कहते हैं यह आप साधारण शब्दों में इसको
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समझ सकते हैं स्ट्रेसर के अनुसार शिक्षण प्रविधि वह योजना है जो शिक्षण उद्देश्य
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व्यवहार गत परिवर्तन विषय वस्तु कार्य विश्लेषण अधिगम अनुभव तथा छात्रों के
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प्रिप अनुभवों को विशेष महत्व देती है यह परिभाषा कौन दे रहे हैं स्ट्रेसर दे रहे
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हैं और आइए अब हम शिक्षण विधि और प्रविधि में कुछ मूलभूत अंतर हैं उनको समझते हैं
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एक तरफ शिक्षण विधि की बातें लिखी हुई हैं और दूसरी तरफ प्रविधि की तो शिक्षण विधि
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जो है उसकी एक सामान्य संरचना होती है जबकि प्रविधि की सामान्य संरचना विधि की
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संरचना पर निर्भर होती है विधि व्यापक होती है जबकि प्रविधि सीमित होती है ठीक
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है विधि का अपना स्वतंत्र अस्तित्व है यह किसी पर निर्भर नहीं है जबकि प्रविधि विधि
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के स्वतंत्र अस्तित्व पर निर्भर होती है यानी प्रविधि का अपना स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता बल्कि यह विधि पर ही निर्भर
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रहती है जिस प्रकार की प्रकृति उस विधि की है वैसे ही प्रकृति प्रविधि की होगी विधि
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शैक्षिक उद्देश्यों से संबंधित होती है जबकि प्रविधि शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विधि के अंतर्गत एक साधन
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के रूप में कार्य करती है तो इस प्रकार से आप विधि और प्रविधि में अंतर समझ सकते हैं तो आज के इस वीडियो
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लेक्चर में हमने यह समझा कि भाषा क्या है भाषा के रूप कौन-कौन से हैं भाषा की
39:14
विशेषताएं कौन-कौन सी हैं भाषा अर्जन किसे कहते हैं भाषा अधिगम किसे कहते हैं शिक्षण
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क्या है शिक्षण का उद्देश्य आधारित वर्गीकरण हमने समझा शिक्षण की परिभाषाएं हमने समझी शिक्षण विधि शिक्षण विधि इन
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दोनों को अलग-अलग समझा और उसके बाद में हमने शिक्षण विधि एवं प्रविधि में अंतर
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समझा तो आज की वीडियो के लिए इतना ही मैं आपसे नेक्स्ट वीडियो लेक्चर में मिलूंगा
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और यदि आप शिक्षण विधियों की पुस्तक मंगवाना चाहते हैं तो आप स्काई एजुकेट मोबाइल पप से ऑर्डर कर सकते हैं यह शिक्षण
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विधियों की पुस्तक जो है यह शिक्षक भर्ती परीक्षाओं एवं पात्रता परीक्षाओं दोनों के पाठ्यक्रम के अनुरूप है जिसकी सारी
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विशेषताएं आप यहां पर एक-एक करके देख पा रहे हैं इस पुस्तक को आप अपने एड्रेस पर मंगवा सकते
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या फिर केवल इसकी पीडीएफ आप प्राप्त करना चाहते हैं अपने फोन में डाउनलोड करना चाहते हैं तो स्काई एजुकेट मोबाइल प आप
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डाउनलोड कर लीजिए वहां से इस पुस्तक की कंप्लीट पीडीएफ आपको मिल जाएगी तो इस वीडियो के लिए इतना ही उम्मीद करूंगा यह
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वीडियो और इसमें बताई गई सामग्री आपको जरूर पसंद आई होगी अगर आपको यह वीडियो पसंद आया है तो आप इस वीडियो को लाइक कर
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सकते हैं शेयर कर सकते हैं और चैनल को सब्सक्राइब नहीं किया तो सब्सक्राइब कर लीजिए मैं मिलूंगा आपसे नेक्स्ट वीडियो के
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साथ तब तक के लिए नमस्कार जय हिंद जय भारत i

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